Sunday, 18 August 2013

पक्के उसूल वाले
मुझे उन लोगों से बहुत डर लगता है ,जो उसूल के पक्के होते हैं |ये वो लोग होते हैं जो हर काम नियत समय , नियत तरीके से, निश्चित रूप से करते हैं |पीछे हटने का सवाल नहीं होता |
ये राजनीति में घुसना इनके बस की बात नही |इनका कहना होता है कि ‘राजनीति और उसूल’ दो ध्रुव हैं ,रेल की दो पटरियां हैं  जो आपस में कभी मिला नहीं करती |
                  ये समय के पाबन्द होते हैं|आफिस समय से पहुचना ,वहाँ का काम वहीं निपटाना इन्हें बखूबी आता है|
लंच टाइम के बीच में या आफिस टाइम के बाद ,लाख सर पटक लो, ये टस के मस नहीं होते|
आपका कैसा भी जरूरी काम हो अगले काम वाले दिन के लिए, टल जाएगा |
आफिस की एक सुई भी चुराने का  पाप लग जाए तो गंगा नहाने चले जाते  हैं |  
                  आओ आपको ,मेरे मोहल्ले के उसूल के पाबन्द कुछ निठ्ठलो से मिलवा दूं,
एक तो हुबहू वही हैं जिनका जिक्र उपर होते-होते रह गया |श्रीवास्तव बाबू ,आर टी ओ आफिस  में क्लर्क हैं |पूरे का पूरा मुहकमा  कमाने में मस्त है ,और ये हैं कि  उसूल का गमछा लटकाए, मुह और पसीना पोछते रहते हैं |
ये लोग  क्लाईंट को क्लाईंट नहीं समझते , इनके सामने जर्सी गाय बाँध दो तो  पाव-भर   दुह नहीं  सकते |अच्छी सी भैंस , खम्भा तोड़ के भाग जाए मगर इनको चम्मच भर दूध न दे |
ये हैं ही उस किस्म के |
 कायदे क़ानून के सख्त |
किताब में जो लिख गया है, वही चाहिए, वरना टेस्ट में फेल |
डाक्यूमेंट परफेक्ट हो, वरना रजिस्ट्रेशन की किताब मिलना मुश्किल |
सब, इनसे बच निकलने की सलाह देते हैं |
किसी की किस्मत ही खराब हो तो इनके पास ड्राइविंग लाइसेन्स ,रूट-परमिट के लिए जाए ,वरना इसी मुहकमे में यूं भी काम होते देखा गया है ,कि बाराती, स्पेशल बाराती-बस में बैठ गए  होते है, और क्लीनर, खूसट से खूसट आर टी ओ बाबू से , रूट-परमिट निकलवा लाता है |
यों श्रीवास्तव बाबू के घर, उनकी लड़की के लिए ,आर टी ओ ,लेबल के नाम पर रिश्ते जरूर आते हैं, पर घर को देख सगा लोग  बिचक जाते हैं|वे कहते हैं ,उनने कमाया ही क्या है जो उनका घर आर टी ओ लेबल का लगे |
श्रीवास्तव के घर से अगली गली में सिन्हा जी रहते हैं |रेलवे में टी.टी ई ,|अनगिनत बेटिकट पकडे ,किसी को नहीं बक्शा |बाकायदा अपनी पूरी सर्विस भर,पूरे पैसे का रशीद काट-काट के  बेटिकटों को थमा दिया |रेलवे का खजाना कैसे भरे बस इसी जुगाड में लगे रहते हैं |
जो पैसे नहीं दिए होते, उनका चालान बना देना एक पुनीत कर्तव्य मानते हैं |उनको लगता है रेलवे की तीसरी आँख उसे देख रही है अगर किसी को छोड़ दिया तो फंस जायेगे|सस्पेंड होना बहुत बडी बेइज्जती होगी वे इस डर को पता नहीं किसी कोने में अंदर तक ले गए हैं |बहरहाल चालान बनाए हुए बेटिकटों के खिलाप , आए दिन वे पेशी में जाते दिखते हैं |
वे इतने सख्त और पक्के हैं कि ,उनके घर वाले भी,जिस ट्रेन में वे हैं , दो-एक स्टेशन तक,किसी को छोड़ने –लिवाने , मुफ्त में जा नहीं सकते|
वे इन दिनों ,एक ट्रेन से उतर कर बिना काम के ,अगली गाडी का इंतिजार करते मिल जाते हैं |
सिन्हा जी के पीछे वाली लाइन में मास्टर-जी रहते हैं ,वे अपने  नाम से ज्यादा अपने काम ‘मास्टरी’ से जाने जाते हैं |सब उनकी इज्जत करते हैं |
वे सब को डाट-डपट के पढ़ने के लिए टाईट किए रहते हैं मगर दिया तले अन्धेरा की कहावत इन्ही के घर के लिए बनी लगती है, उनका खुद का बेटा मिडिल में जहाँ वे हेड-मास्टर हैं फेल हो जाता है |
वे पास कराने का जोखम कभी नहीं उठाये ,उसूल आड़े आ जाता है |
वे महाभारत पढ़ के संतोष कर लेते हैं ,कई गलती किए हुए पात्रों  को ,नीति से भटके हुओं को पढ़ कर अपनी तरफ से गलती न दुहराने का फिर संकल्प ले लेते हैं |पत्नी को महाभारत सुना-सुना के अपनी  ‘रक्षा –कवच’ मजबूत किए रहते हैं |
उनके लड़के के फेल हो जाने पर, उनकी इज्जत में इजाफा हुआ मिलता है |लोग उन्हें दूर से पहचान लेते हैं ,ये मास्टर जी वही  हैं, जिनका लड़का इस  साल फेल हो गया |
मास्टर –जी के दुर्दिन देख के, मुझे धर्म –सभा जाने में ,अगरबत्ती का बड़ा पैकेट खरीदने में ,बड़े-बड़े धर्म-ग्रन्थ घर में रखने में दर सा लगने लगा है |खैर ,...ये अलग सी बात है |  
  एक पंडित जी हैं, उन्हें बुलाओ तो वे कथा वाचन के विस्तार में डूबकी लगाने लग  जाते हैं| उनका बस चले तो वे कथा-विस्तार की खाई में उतरते चले  जाएँ| उनका उसूल कहता है, जजमान को पैसे के मुताबिक मिलना चाहिए |भक्त-जन ,जो कभी-कभी पकड़ में आते हैं , इतना सुनाओ कि वे या तो उनके  भक्त बन जाए. या भक्ति छोड़ दें |
                  कभी-कभी मुझे लगता है कि इस गली का नाम बदल कर ‘उसूल वाली गली’ कर दिया जाता तो बेहतर होता|
करीब-करीब, उसूलों के झोपड़े नुमा घरों के बीचो-बीच इस मुहल्ले में ,एक भव्य लान और डायनासोर- टाइप कुत्तों वाला घर भी है|
इस घर का स्वामी भी पक्का उसूलों वाला, इंजीनियर है|वे किसी ठेकेदार को नहीं बख्शते |रोड हो ,इमारत हो ,पुल हो कि पुलिया, वे कहीं  नहीं खाते |
हर जगह खाने में अपच हो जाती है ऐसा उनका मानना है ,वे हाजमोला साथ लिए फिरते हैं |
थोड़ा खाओ लेकिन बढिया खाओ के सिद्धांत पर वे बीस –पच्चीस से नीचे को हाथ नहीं लगाते |अपना-अपना उसूल है|
वे अपने उसूल को हालाकि माइ़क पकड़ कर किसी इंटरव्यू में शेयर तो नहीं करते मगर चौथे  पेग के बाद तहे दिल से के साथ ये क़ुबूल करते हैं ,भाई मै एक ईमानदार इंजिनियर था कभी कुछ लेता नहीं था फिर भी मेरा नाम  ठेकेदारों की डायरी में बकायदा लिखा होता था |
इमानदारी से बनाया हुआ पुल टूटते मैंने देखा है|मैंने इंक्वारी पे इंक्वारी फेस की है,जगह –जगह पैसे दे के बच पाया हूँ  |फिर क्या फ़ायदा ?
पीना सीख लिया| इमान को नशे में डूबा दिया |
चखने का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने डाइनासोर की तरफ वो उछाल के अक्सर कहता है ,
आखिर डाइनासोरों की खुराक का भी तो ख्याल रखना पडता है न ?
सुशील यादव
वडोदरा (गुजरात)      



तोते की उडान

हम लोग पुश्तैनी ढंग से तोता पालते आए हैं |वैसे तोतो की  उम्र १२-१५ बारस की होती है |
हमारे ‘निर्मल-टाइप’ निर्मल ह्रदय , दादाजी ने कहा था कि घर में अगर सुख-शान्ति चाहिए तो तोता जरूर पालना |
उनकी तेरहवीं निपटने तक ताऊ -काका –माम्मा ,हरेक –बेटे-बहुओ ने तोते की फरमाइश कर दी|
बहेलिए को थोक में आर्डर देके तोता मंगवाया और हर घर में दादाजी का प्रसाद बट गया |
यूं  तो सब के फेमली डाक्टर ,नाइ –धोबी होते हैं ,वो हमारा फेमली –खानदानी बहेलिया नियुक्त हो गया |
अब किसी के यहाँ तोता बुढउ हुआ नहीं कि बहेलिए को मोबाइल में  तलब कर लेता है |
तोते को ट्रेनिग देने के लिए हम लोगो ने बकायदा ट्यूटर रख लिया है |हर घर में ट्यूटर आकर जरूरत के मुताबिक सिखा जाता है |
दादी-माँ ट्यूटर से कहती है इसे राधे –राधे सिखाओ |
वो हर आने जाने वालो को राधे-राधे कहता है |
ताऊ जी बहुत डीफकल्ट सा दोहा सिखलाने की फरमाइश किए बैठे हैं  ;
“चित्रकूट के घाट में ,भई संतान की भीर
तुलसी –दास चन्दन घिसे ,तिलक लेत रघुबीर “
ट्रेनर जी तोड़ मेहनत किए रहता है ,दो-दो तीन –तीन घंटे बिताता है , तोता सीख भी रहा है |
कभी चित्रकूट के ‘घात’ में कह लेता है ,
कभी ‘भाई’ संतान बोल लेता है |
ताऊ जी तोते के  प्रोग्रेस से बहुत खुश हैं |अपना टाइम- पास तोते की जबान को टीक करने में किए रहते हैं | उनका बी.पी ,टेंशन नार्मल हो गया है |बात-बेबात चिडचिडाने  की आदत कम हो गई है |
काका जी के घर का हाल अजब है ,ठीक ड्राइंगरूम में रखे टी वी के बगल में उन लोगो ने पिंजरा रख दिया है |
तोता टी वी  से इंस्पायर्ड हो के खुद “शीला की जवानी” बोल-बोल  के हर आगंतुक को ‘तोता पालने ‘ की  एडवरटाइजिंग किए रहता है |
तोते वाले ,हर घर में बच्चो को एक ही सीख (ताने) दिए जाते हैं ,देखो, तोते को देखो ,मेहनत करके क्या नहीं सीख लेता ?तुम लोग भी मेहनत करो ,तुम तो आखिर   इंसान हो क्या-क्या नहीं सीख सकते ? अच्छे नम्बर पाने के लिए दिन -रात सीखना जरूरी है |
दीदी के यहाँ के तोते का रिमोट कंट्रोल , भानजो के हाथ में है |
भानजो ने , उसे मजाक –मजाक में मामू तू बुध्धू है ,माम्मु तू बुध्धू है सिखा दिया है |जब भी मै वहाँ पहुचता हू ,वो चिल्लाने लगता है ,मामू ,मामू ....|
मामू -मामू रट के बीच में
“मामू तू बुध्धू है”....... “मामू तू बुध्धू है”.......बोल जाता है |
मुझे बस हँसी आ जाती है |मुझे लगता है,हरेक तोता आखिर  ‘रिमोट- कंट्रोलर’ की सुनता है |
सुशील यादव वडोदरा १५.५.१३ 09426764552



झाड़ू लगाने की योग्यता.....



बैल मुझे मार |वे रोज एक बयान देकरबैल
किस्म के विरोधियों को न्योता दिए रहते हैं|
हिन्दुस्तान मेंसांडसे लडने का माद्दा होता नहीं |
ही, यहाँ कोई लाल कपड़ा लेके सांड के आगे फहराता है और ही कोई बिगडैल सांड उछल-उछल के दौडाने वाले के पीछे भागता है |
हमारे यहाँ लाल झंडी का प्रयोग-उपयोग भी अब इलेक्टानिक युग आने पर खत्म होने के कगार पर है|रेलवे  वाले कभीकभार मेंटनेंस के नाम पर ट्रेक के बीचो-बीच लाल कपड़ा दो लकडी के खूटों में बाँध देते हैं बस
लाल गमछे वाले छूट-भइये नेता भी विलुप्त होने के  जैसे हैं|
आज से  हजार साल बादफासिलमें इनकागमछादेख के केवल अनुमान लगाया जाता रहेगा कि कभी छुटभैइयों  का ड्रेसकोड भी होता था |
छुटभैइयों का चोला पार्टी के थीम कलर पर यानी भगुआ ,तिरंगा ,नीला ,पीला या आसमानी सा हो गया है|वे कहते हैं,चंदा जमा करने या शहर बंद कराने के दौरान  ये चोला बहुत मारक  क्षमता रखता है|
पार्टी वाले भड़काऊ किस्म केवचन-प्रवचनकरने वाले प्रवक्ताओं को आगे किए रहते  है |
जैसे ही बैलवाला संवाद कहीं से आया नहीं कि ये लठ्ठ लेकर पीछे दौड पडते हैं, और तब तक दौडाते हैं कि अगला कहीं नदी-नाले में गिर कर हाफ्ने लगे |(यहाँनदीको सिर्फ प्रतीकात्मक प्रचलन समझ कर पढे तो अच्छा लगेगा |)
नीचा दिखाने के नाम पर वे कहते हैं ,उन्हें तो पी एम के दफ्तर में झाड़ू लगाने की नौकरी भी नहीं मिल सकती |
अब एक  कार्यकर्ता जो इसी स्तर  से उठते  हुए ऊपर पहुचा है, उसकी काबलियत पर शक करना बेकार की बात है कि नहीं ? वैसे अपने घर में ,ऐसा कोई शख्श नही जो दावे के साथ  कहे कि उसने कभी  झाड़ू लगाई ही नहीं ?
वे इस बात का खुलासा भी नहीं करते कि झाड़ू किस स्तर  का लगवाना है |
सी.बी आई वाला झाड़ू या इनकम टैक्स टाइप झाड़ू |सीबी आई ,समूचा दफ्तर साफ कर के कचरा हटाने का दावा करती है |इंकम टेक्स वाले यूँ झाड़ू फेरते हैं कि सब खायापीया एक-बारगी निकल जाता है|
वे तिनका भी नहीं छोडते |
इस प्रकार केझाड़ू-कर्ताओ’  की बकायदा नियुक्ति होती है ,वे पढाकू किस्म के लोग होते हैं ज्ञान का भण्डार उनमे कूट-कूट कर भरा होता है |
उनके काम को असभ्य लोग बोलचाल में भलेझाड़ू लगाना या किए कराए पर झाड़ू फेरना कहें , मगर वे छापे को छापे की  पूरी प्रक्रिया से  निबाहते हुए एक वैधानिक स्तिथी से न्यायालय को अवगत कराते हैं |
उनकी सफाई रास्ते के रोडे-पत्थर और काटों को हटाने की नेक-नीयती में होती है |
बडबोले बाबू, कभी यूँ प्रचारित करके कि मैंने फलां इलेक्शन में आठ करोड लगाए हैं, अपना पैर कुल्हाडी पर दे मारते हैं |
सीधा सा गणित ये कहता है कि, पांच साल के कार्यकाल में कोई तनखा इतनी रकम दे नहीं सकती और ये हैं कि इतनी बड़ी रकम इलेक्शन में झोक देते हैं |अगर हार गए तो घर का मुद्दल ही साफ |
ये चुनाव आयोग की पक्की दीवारों में सेध लगाने जैसी बात हुई कि नहीं ?
 हमारे बुजुर्ग ने ये हिदायत दे रखी है कि कल जिनका तलुआ चाटना है, आज तो कम से कम उंनके विरुध्द बोलो |
हम लोग इस नसीहत की अनदेखी का परिणाम आज तक भुगत रहे हैं |
हमारे क्लास में दब्बू किस्म का एक दुबला-पतला ,मरियल सा लड़का था |अपने -आप में सिमटा सा |उसे  हम किसी खेल में नहीं रखते थे अगर वो टीचर के कहने पर रख भी लिया जाता तो उस टीम के लिए पानौती साबित होता |
टीम की हार सुनिश्चित हो जाती |सभी उसेपनौती-पनौतीचिढाते |
जाने क्या चमत्कार हुआ किपनौतीआज मिनिस्टर है | आज वो जिस काम को भी हाथ लगाता है वहीं तरक्की दिखाई देती है |
 उसे सताने वाले हम सभी दोस्त आज उनसे एक सादा सा, अपना ट्रांसफर वाला काम भी नहीं करवा सकते |हमे अपने-आप से शर्म सी आती है |
हम लोगों ने अनजाने में एक बैल को, आने वाले भविष्य में हमे मारने का न्यौता  दे दिया था |
हमारा अपराध क्षम्य हो प्रभु |
(मोराल आफ स्टोरी : .झाड़ू लगाने की क्षमता हर छोटे बड़ों, सब में होती है किसी को इतना मत छेड़ो कि तुम्हे पूरे का पूरा साफ कर दे |. इतना मत फेको कि यमराज तुम्हे बिना वक्त बुलाने के लिए टेंशन ले और दे  . किसी बैल को इतना मत सताओ कि उसमे सांड सा बल जाए ,कि तुमसे सम्हालते बने )
सुशील यादव
श्रिम सृष्टि
सन फार्मा रोड अटलादरा
वडोदरा (गुजरात)३९००१२
मोबाइल 09426764552




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